भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर कौन-सा है? जानिए शक, विक्रम और क्षेत्रीय संवतों की कहानी

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भारत में समय की गणना का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां केवल एक ही कैलेंडर नहीं, बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में कई तरह के ‘संवत’ या पंचांग प्रचलित हैं, जिनके आधार पर त्योहार, कृषि कार्य, धार्मिक पर्व और सामाजिक आयोजन तय होते हैं। अंग्रेजी नया साल 2026 शुरू होने जा रहा है, ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि भारत का आधिकारिक कैलेंडर कौन-सा है और देश में कौन-कौन से संवत चलते हैं।
विक्रम संवत: प्राचीन और धार्मिक पहचान
विक्रम संवत भारत के सबसे पुराने और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण कैलेंडरों में से एक है। इसका नाम सम्राट विक्रमादित्य से जुड़ा माना जाता है। यह चंद्र-सौर प्रणाली पर आधारित है, यानी इसमें चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति से तिथियों की गणना होती है। वर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है, जो सामान्यतः मार्च-अप्रैल में पड़ती है। विक्रम संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से लगभग 57 वर्ष आगे चलता है, इसलिए इसकी वर्ष संख्या अलग होती है।
शक संवत: भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर
भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 से शक संवत को देश का राष्ट्रीय कैलेंडर घोषित किया। यह पूरी तरह सूर्य आधारित कैलेंडर है और वैज्ञानिक दृष्टि से काफी सटीक माना जाता है। इसका वर्ष भी चैत्र माह से शुरू होता है और इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह अंग्रेजी कैलेंडर के समानांतर आसानी से समझा जा सके। आज सरकारी गजट, अधिसूचनाएं, सरकारी छुट्टियां और कई आधिकारिक दस्तावेज शक संवत के अनुसार ही जारी किए जाते हैं।
भारत के प्रमुख क्षेत्रीय कैलेंडर
भारत की विविधता उसके कैलेंडरों में भी दिखती है—
तमिल कैलेंडर: तमिलनाडु में प्रचलित, नया साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है।
बंगाली कैलेंडर: बंगाल में ‘पोइला बोइशाख’ 14 या 15 अप्रैल को मनाया जाता है, जब व्यापारी नई बही-खाता शुरू करते हैं।
मलयालम कोल्लम संवत: केरल का स्थानीय कैलेंडर, जिसकी शुरुआत लगभग 17 अगस्त से मानी जाती है।
गुजराती कैलेंडर: अमांत प्रणाली पर आधारित, गुजराती नव वर्ष दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है और पहला महीना कार्तिक माना जाता है।
ये सभी कैलेंडर स्थानीय संस्कृति, मौसम और कृषि चक्र को ध्यान में रखकर बने हैं और आज भी लोगों के जीवन में गहराई से जुड़े हुए हैं।
