Wednesday, December 24, 2025

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सुप्रीम कोर्ट ने यौन पीड़िता की गवाही में मामूली विरोधाभासों से जुड़े तर्कों को किया खारिज

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‘दुर्भाग्यपूर्ण है… हमें समय बर्बाद करना पड़ रहा है’, आवारा कुत्तों के मामले में बोला सुप्रीम कोर्ट

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24 दिसंबर 2025, 12:11 pm IST
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सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने एक फैसले में बाल तस्करी को लेकर कहा कि यह देश में बहुत चिंताजनक हकीकत है। आधुनिक गुलामी के सबसे भयावह रूपों में से एक है बाल तस्करी। अफसोस कि सुरक्षा कानूनों के बावजूद संगठित गिरोहों द्वारा बच्चों का यौन शोषण हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट बेंगलुरु में तस्करों के एक गिरोह द्वारा जबरन यौन शोषण की शिकार एक नाबालिग लड़की के मामले की सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने अनैतिक व्यापार अधिनियम के तहत गिरोह के सदस्यों की सजा को बरकरार रखा।



मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने संगठित अपराध नेटवर्क की जटिल और बहुस्तरीय संरचना की ओर ध्यान दिलाया, जो नाबालिग पीड़ितों की भर्ती, परिवहन, आश्रय और शोषण के कई स्तरों पर काम करते हैं। कोर्ट ने कहा कि यह अपराध गरिमा, शारीरिक अखंडता और प्रत्येक बच्चे को शोषण से बचाने के राज्य के संवैधानिक वादे की बुनियाद पर चोट करता है। पीठ ने बाल तस्करी के मामलों में पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश तय किए।



एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि अपीलकर्ता के वकील ने पीड़िता के बयानों और अभियोजन के मामले को कई आधारों पर चुनौती दी थी। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता ने कोर्ट में दावा किया कि जबरन यौन संबंध बनाने से उसे चोटें आईं और खून बहने लगा, जबकि मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए उसके पिछले बयान में इसका जिक्र नहीं था। बचाव पक्ष ने घटनास्थल के नक्शे को लेकर विरोधाभास उजागर किया। पीड़िता ने बताया था कि वहां दो कमरे थे, जबकि अन्य गवाहों ने कहा कि वहां एक हॉल था।



यह तर्क दिया गया कि तलाशी और बरामदगी के दौरान इलाके के दो या अधिक सम्मानित लोगों का उपस्थित होना अनिवार्य है। नाबालिग पीड़िता की गवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की गवाही में मामूली विरोधाभासों से जुड़े तर्कों को खारिज कर दिया। जस्टिस बागची ने फैसले में लिखा कि यौन तस्करी की नाबालिग पीड़ितों की गवाही को संवेदनशीलता और यथार्थवाद के साथ देखा जाना चाहिए।



1996 के फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि यदि पीड़िता का बयान विश्वसनीय है, तो केवल उसकी गवाही पर भी सजा दी जा सकती है। पीठ ने पाया कि पीड़िता की गवाही सबसे विश्वसनीय है और एनजीओ कार्यकर्ता, डिकॉय गवाह और स्वतंत्र गवाह ने इसकी पुष्टि की है। मामला 2010 का है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की अपील खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट के उन फैसलों को सही ठहराया जिनमें आरोपियों को कई धाराओं में दोषी पाया गया था।

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