हकीकत में कितनी गहराई है नैनी झील की?

Nainee Lake
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- प्रयाग पाण्डे
जब राजनीतिक नेतृत्व जन सरोकारों से जुड़े विषयों के प्रति उदासीन हो जाता है तो कार्यपालिका प्रयोगधर्मी हो जाती है। सरकारी अधिकारी अपने बुनियादी दायित्वों को तिलांजलि दे कर मनमर्जी करने लगते हैं। कुछ अरसा पहले सिंचाई विभाग के इंजीनियरों द्वारा विश्व विख्यात नैनी झील के जलस्तर को मापने का ब्रिटिशकालीन पैमाना बदलना और नैनी झील की वर्तमान अधिकतम गहराई को लेकर विरोधाभासी दावे इस बात की बानगी हैं। नैनी झील, नैनीताल की संजीवनी है। यहां का प्राण है। नैनीताल का संपूर्ण जीवन-चक्र नैनी झील के इर्द-गिर्द ही घूमता है। इसका अनुपम नैसर्गिक सौंदर्य देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। नैनी झील यहां के बाशिंदों को रोजी- रोटी, भोजन- पानी, पहचान और आत्म सम्मान देती है। नैनी झील की सेहत और खूबसूरती से ही नैनीताल की खूबसूरती है। पर्यटन है, रोजगार है। सालाना अरबों का कारोबार है। नैनीताल का वजूद झील पर ही टिका है। नैनी झील को सुरक्षित एवं संरक्षित कर इसे दीर्घायु बनाने के प्रयत्न करने के बजाय उत्तराखंड का सिंचाई विभाग नैनी झील को लेकर निरर्थक नए प्रयोग करने पर आमादा है।
कुछ महीने पहले स्थानीय अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक सिंचाई विभाग ने झील के जल स्तर को मापने का पैमाना बदल दिया है। झील की अधिकतम गहराई को जल स्तर मापने का नया पैमाना बना दिया है। सिंचाई विभाग द्वारा बताई जा रही नैनी झील की वर्तमान में अधिकतम गहराई का आंकड़ा संदेहास्पद प्रतीत होता है। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने भारत में अनेक हिल स्टेशन बसाए। उसी क्रम में अंग्रेजों ने नैनीताल को भी एक सुव्यवस्थित हिल स्टेशन के रूप में बसाया और संवारा। अंग्रेजों ने इस नगर के दीर्घ जीवन के लिए यहां की खूबसूरत झील, पहाड़ियों, नालों एवं झील के जल संग्रहण क्षेत्र के लिए लिए वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थाएं बनाई। उन पर ईमानदारी के साथ अमल भी किया। विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ अंग्रेज अधिकारियों ने गहन अध्ययन एवं शोध के बाद नैनीताल की झील, पहाड़ियों एवं नालों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम- कानून बनाए। अंग्रेज इंजीनियरों ने नैनी झील के प्राकृतिक जल निकास बिंदु को छोड़कर संपूर्ण झील के चारों ओर बारह फिट ऊंची दीवार बनाई। झील के प्राकृतिक निकास स्थल पर अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए 15"x 30" के पांच निकासी गेट बनाए। अंग्रेज इंजीनियरों ने झील के प्राकृतिक निकास बिंदु के तल को शून्य जल स्तर मानते हुए इससे ऊपर के पानी को झील के जल स्तर का पैमाना माना।
इस पैमाने के अनुसार झील के जल स्तर को नापने के लिए 12 फिट ऊंचा गेज लगाया गया। झील के जल स्तर की निगरानी के लिए वहां कंट्रोल रूम बनाया गया। इस कंट्रोल रूम से झील के जल स्तर की चौबीसों घंटे निगरानी की व्यवस्था की गई। अंग्रेजी शासनकाल में झील के जल स्तर का प्रति घंटे का चार्ट बनता था। साल के किस महीने और किस तारीख को झील का अधिकतम जलस्तर कितना होना चाहिए, इसके लिए बाकायदा नियम बनाए गए थे। निर्धारित सीमा से अधिक पानी होने की स्थिति में झील से अतिरिक्त पानी की निकासी कर दी जाती थी। कंट्रोल रूम झील के जल स्तर और निकासी गेटों की चौबीसों घंटे निगरानी करता था। झील के प्राकृतिक निकास के तल को शून्य जलस्तर मानते हुए पानी इससे कम हो जाने पर जल स्तर को ऋणात्मक माना जाता था। यानी शून्य से नीचे। अंग्रेजी शासनकाल में बनी यह व्यवस्था कुछ दशक पूर्व तक सुचारू रूप से चलती रही। लेकिन अब सिंचाई विभाग के प्रयोगधर्मी अभियंताओं को 'शून्य से नीचे' शब्द नहीं भा रहा है। 'शून्य से नीचे' शब्द से छूटकारा पाने की मंशा से सिंचाई विभाग के इंजीनियरों ने अर्थहीन और सतही तरीका खोज निकाला है।
अंग्रेजों ने हर साल नैनी झील की लंबाई, चौड़ाई और गहराई नापने का नियम बनाया था। झील की नाप-जोख के लिए झील की सतह पर अलग-अलग स्थानों पर बीस पिलर बनाए गए थे। तब नियमित रूप से हर साल झील की लंबाई, चौड़ाई एवं गहराई नापी जाती थी। सिंचाई विभाग ने झील की नाप-जोख के लिए झील की सतह पर पिलर होने से इनकार किया है। यह दीगर बात है कि देखरेख के अभाव में मौजूदा समय में ब्रिटिशकालीन पिलर अस्तित्वविहीन हो गए हैं, लेकिन यह सच है कि पिलर बने थे। जब झील का प्रबंधन लोक निर्माण विभाग के पास था, ने 28 व 29 दिसंबर,1998 को अंतिम बार झील की नाप-जोख अंग्रेजी शासनकाल में बने इन सांकेतिक पिलरों के आधार पर ही की थी।
2017- 18 में अज्ञात कारणों के चलते नैनी झील का प्रबंधन सिंचाई विभाग को सौंप दिया गया। गर्मियों के मौसम में आमतौर पर झील का जलस्तर शून्य से कई फिट नीचे चला जाता है। संचार माध्यमों में इस आशय की खबरें छपती हैं। कहा जा रहा है कि इस हकीकत को छिपाने के लिए सिंचाई विभाग ने ब्रिटिश शासनकाल से चले आ रहे 'शून्य' के इस पैमाने को ही बदल दिया है। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों ने अब नैनी झील की कथित अधिकतम गहराई को झील का जलस्तर मान लिया है। सिंचाई विभाग ने झील की अधिकतम गहराई 89 फिट घोषित की है। बकौल सिंचाई विभाग भविष्य में झील के जल स्तर को मापने का नया पैमाना झील की कथित अधिकतम गहराई 89 फीट मानी जाएगी। सिंचाई विभाग ने लेक कंट्रोल रूम के नीचे ब्रिटिश शासनकाल के दौरान लगे 12 फिट के गेज/पैमाने को निकाल कर उसके स्थान पर नया गेज/ पैमाना लगा दिया है, जिसमें झील की अधिकतम गहराई 89 फीट दर्शाई गई है।
प्रश्न यह है कि सिंचाई विभाग ने झील की वर्तमान समय में अधिकतम गहराई 89 फिट कैसे आंकी? इस संबंध में सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई जानकारी में सिंचाई विभाग ने 15 जुलाई, 2025 को बताया है कि सिंचाई विभाग ने वर्ष 2018 में ए.एच.ई.सी.(आईआईटी,रुड़की) एन.आई.एच, रुड़की और आई.सी.ए.आर, देहरादून ने नैनी झील का बाथीमीट्रिक सर्वे कराया था। इस सर्वे के अनुसार नैनी झील की अधिकतम गहराई 27.15 मीटर यानी 89 फीट डेढ़ इंच है। जबकि 28 व 29 दिसंबर, 1998 में लोक निर्माण विभाग ने नैनी झील की नाप-जोख की थी, तब लोक निर्माण विभाग ने झील की अधिकतम गहराई 25.80 मीटर यानी 84 फीट आठ इंच नापी थी। इन बीस सालों में झील की गहराई हैरतअंगेज तरीके से करीब साढ़े चार फीट कैसे बढ़ गई? झील की गहराई में करीब साढ़े चार फीट की यह कथित बढ़ोतरी यकीनन चौंकाने वाली है।
काबिल-ए- गौर यह है कि 1998 में नैनीताल नगर में मकानों की संख्या करीब साढ़े तीन हजार के आसपास थी। 2018 तक यहां मकानों की संख्या तकरीबन दुगुनी हो गई थी। वर्तमान में यहां मकानों की संख्या 1998 के मुकाबले करीब ढाई गुनी से अधिक हो गई है। इसी अनुपात में जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। आज से एक सौ बरस पहले नैनी झील की अधिकतम गहराई 28.3 मीटर यानी 93 फीट आंकी गई थी। तब यहां कुल करीब साढ़े पांच सौ मकान थे और यहां की जनसंख्या ग्यारह हजार के आसपास थी। तब के मुकाबले आज यहां की आबादी छह गुना से अधिक बढ़ गई है। मकानों की संख्या में बीस गुना इजाफा हुआ है।
यदि बात पिछले ढाई दशकों की ही करें तो इस कालखंड में नैनीताल नगर में हजारों नए मकान बने। जनसंख्या में बेतहाशा उछाल आया है। पर्यटकों की आमद भी बढ़ी है। पिछले ढाई दशक के कालखंड में भवन और अन्य निर्माण गतिविधियों में निकला मिट्टी- मलबा और कूड़ा-करकट का कितना हिस्सा नालों के द्वारा झील के उदर में समाया, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसके बावजूद सिंचाई विभाग के कथनानुसार नैनी झील की गहराई 1998 के मुकाबले 2018 में घटने के बजाय आश्चर्यजनक रूप से करीब साढ़े चार फीट बढ़ गई है। यदि लोक निर्माण विभाग द्वारा 1998 में की गई नाप-जोख को दुरुस्त माना जाए तो नैनी झील की वर्तमान समय की अधिकतम गहराई को लेकर सिंचाई विभाग का दावा संशय और भ्रम उत्पन्न करता है। नैनी झील की गहराई को लेकर लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग के कथन में विरोधाभास है।
मुद्दा नैनी झील के जलस्तर का पैमाना बदलने का नहीं है। दरअसल यह विषय सीधे तौर पर नैनी झील की सेहत से जुड़ा है। झील की सेहत से नैनीताल का मुस्तक़बिल तय होता है। झील को लेकर इंतजामिया का सतही, अगंभीर और असंवेदनशील रुख निश्चित ही चिंतनीय है। यक्ष प्रश्न यह है वर्तमान समय में नैनी झील की वास्तविक अधिकतम गहराई है कितनी? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।
