महाराष्ट्र के हालिया निकाय चुनावों के परिणामों ने स्पष्ट की राज्य की राजनीतिक दिशा

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मुंबई, (ईएमएस)। महाराष्ट्र के हालिया निकाय चुनावों के परिणामों ने राज्य की राजनीतिक दिशा स्पष्ट कर दी है। भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने नगर निकायों में प्रचंड जीत हासिल की है। राज्य के कुल 288 जिला निकायों में से 215 में अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाकर महायुति ने अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन किया है। इस गठबंधन में भाजपा सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभरी है, जिसने अकेले 129 निकायों में जीत दर्ज की है।
इन नतीजों में सबसे चौंकाने वाली और ऐतिहासिक जीत नागपुर जिले की कम्पटी नगरपालिका परिषद में देखने को मिली है, जहां भाजपा ने 40 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद सत्ता हासिल की है। इकम्पटी नगरपालिका परिषद की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का संसदीय क्षेत्र है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय भी इसी जिले में स्थित है। इन तमाम समीकरणों के बावजूद भाजपा यहां पिछले चार दशकों से जीत के लिए संघर्ष कर रही थी। भाजपा उम्मीदवार अजय अग्रवाल ने कांग्रेस के शाकूर नागानी को 103 वोटों के बेहद करीबी अंतर से मात दी।
हालांकि, इस कांटे की टक्कर के बाद हारने वाले पक्ष ने चुनावी नतीजों में अनियमितता के आरोप लगाए हैं। विपक्ष का दावा है कि मतगणना के अंतिम दौर तक वे आगे चल रहे थे, लेकिन अंतिम समय में समीकरण बदल दिए गए। इस सीट पर चुनावी मुकाबला केवल वोटों तक सीमित नहीं था, बल्कि भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी व्यक्तिगत बयानबाजी ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं।
चुनाव के दौरान गठबंधन और टिकट वितरण को लेकर भी काफी दिलचस्प मोड़ आए। बहुजन रिपब्लिकन एकता मंच की नेता सुलेखा कुंभारे ने भाजपा से समर्थन की उम्मीद की थी, लेकिन राज्य में भगवा लहर के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। दूसरी ओर, कांग्रेस के भीतर भी टिकटों के बंटवारे को लेकर काफी खींचतान देखी गई, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला।
परिणामों के बाद अब राजनीतिक गलियारों में बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) चुनावों को लेकर कयास तेज हो गए हैं। स्थानीय निकाय चुनावों में मिली इस बड़ी सफलता ने महायुति के कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया है। वहीं दूसरी ओर, इन नतीजों ने विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी में दरारें पैदा कर दी हैं। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने कांग्रेस की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि मुंबई जैसे महानगरों में कांग्रेस का कोई खास वजूद नहीं रह गया है। शिवसेना का मानना है कि बीएमसी पर पिछले तीन दशकों से उनका कब्जा रहा है, इसलिए कांग्रेस को आगामी चुनावों में बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है।
