नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी की एक सांसद हैं जया बच्चन। देश में जाना पहचाना नाम है। हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री हैं। पति अमिताभ बच्चन भी अभिनेता हैं। देश के प्रसिद्ध कवि , राज्यसभा सदस्य रहे पद्मविभूषण स्वर्गीय हरिवंश राय श्रीवास्तव (बच्चन) की बहू हैं। पिछले कुछ वर्षों से अपनी तुनक मिजाजी के कारण चर्चा में रहने वाली जया बच्चन ने एक विवादित बयान दिया है। उनका कहना है कि वे कभी नहीं चाहेंगी कि उनकी पोती विवाह करे। विवाह उनके लिए पुराना "कॉन्सेप्ट" है। जया बच्चन यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने कहा कि उनकी पोती को अपने जीवन को "एन्जॉय" करना चाहिए।
जया बच्चन ये बात बरखा दत्त के शो "वी द वीमेन" में कही। ये वही बरखा दत्त है, जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। जो नीरा राडिया टेप विवाद में फंसी थीं, जो 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले से जुड़ा था। आयकर विभाग ने जब नीरा राडिया के फोन टैप किए, तो उसमें से बरखा दत्त और नीरा राडिया के बीच कॉर्पोरेट लॉबिस्टों और कांग्रेसी राजनेताओं के बीच संबंध और राजा की दूरसंचार मंत्री के रूप में नियुक्ति को प्रभावित करने की बातचीत सामने आई थी। साथ ही मुम्बई में 26/11 के आतंकी हमलों में अपनी रिपोर्टिंग से सेना के गोपनीय मूवमेंट का खुलासा करने पर लताड़ी गयी थी।
ख़ैर, अभी बात जया बच्चन की, तो जब जया बच्चन विवाह जैसे पवित्र संस्कार पर मुंह बिचकाकर बात करती हुई नजर आती हैं, तो उनका असल चेहरा सामने आता है। उनकी बुद्धि पर तरस भी आता है। एक हिन्दू परिवार में जन्म लेने के बाद जया बच्चन विवाह को "कॉन्सेप्ट" शब्द से जोड़कर एक भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही हैं। साथ ही नई पीढ़ी की लड़कियों के सामने वामपंथी और पाश्चात्य नैरेटिव सेट करने की कोशिश भी करती दिखाई देती हैं।
दरअसल जया बच्चन विवाह का निकाह, मैरिज जैसे शब्दों के साथ घालमेल करने की नाकाम कोशिश कर रही हैं। पहले फिल्मों में उनके पति अमिताभ बच्चन 786, दरगाह, मस्जिद, हज को ग्लोरीफाई करते नजर आते थे। हिन्दू देवी-देवताओं के सामने "आज खुश तो बहुत होंगे तुम" जैसे सलीम-जावेद द्वारा लिखित स्तरहीन डायलॉग बोलते दिखाई देते थे। मंदिर का बहिष्कार करना और चर्च, क्रॉस, दरगाह और 786 नम्बर को प्रमोट करना उनकी हर फिल्म की स्क्रिप्ट में अनिवार्य रूप से होता ही था। अब उनकी पत्नी समाजवादी पार्टी की नेता बनकर उसी लाइन को बढ़ाने में लगी हैं।
हिंदू धर्म में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं ,धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष । विवाह संस्कार का उद्देश्य काम नामक पुरुषार्थ को पूरा करना और फिर धीरे-धीरे ' मोक्ष ' की ओर बढ़ना है। स्त्री और पुरुष के जीवन में कई महत्वपूर्ण बातें विवाह से जुड़ी होती हैं, जैसे सन्तान को जन्म देकर अपने वंश को बढ़ाना और पितृ ऋण से मुक्त होना। जीवन की विभिन्न सुखद घटनाओं का साक्षी बनना, गृहस्थ आश्रम को स्थापित करना, सामाजिक स्थिति और समृद्धि को प्राप्त करना इत्यादि। विवाह के बाद कई नए संबंधों द्वारा स्नेह और आदर दोनों प्राप्त करना। अपने घर के वरिष्ठजनों के अनुभव से जीवन मे सफलता पाना। अपनी सन्तति को संस्कारित करना, उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाना। घर के बड़े बूढ़ों की सेवा सुश्रुषा करना।
हमारे समाज में विवाहित स्त्री को आदर के साथ देखा जाता है। माथे पर कुमकुम लगाए, गले में मंगलसूत्र , हरी-लाल चूड़ियां, बिछिया और छह या नौ गज की साड़ी पहने स्त्री को देखकर देखने वाले के मन में उसके प्रति स्वतः ही आदर उत्पन्न होता है। विवाह के पश्चात् पत्नी, पुत्रवधू, मौसी, ननद आदि संबंधों के कारण स्त्री को स्वतः ही सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता है। कोई भी स्त्री पत्नी और माता के रूप में घर, परिवार व समाज में उच्च स्थान प्राप्त करती है। शास्त्रों के विधि विधान के अनुसार विवाहित पुरुष पत्नी की अनुपस्थिति में यज्ञ, हवन जैसे धार्मिक संस्कार नहीं कर सकते। धार्मिक कार्यों में भी उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण होती है। कई रीति रिवाज, पूजा पाठ विवाहित स्त्रियों के बिना संपन्न नहीं होते। यह सम्मान हमारे यहां विवाहित स्त्रियों को प्राप्त होता है।
हमारी संस्कृति में विवाह जन्म-जन्मांतर का साथ है। तलाक या डाइवोर्स शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं है। जबकि निकाह या मैरिज कॉन्ट्रैक्ट जैसा बन्धन होता है। जब इस्लाम में मियां बीवी साथ नहीं रहना चाहते तो निकाह वाले तीन बार तलाक बोलकर अलग हो जाते हैं। यहाँ केवल शौहर को तलाक लेने का हक़ है, मुस्लिम महिलाएं तलाक नहीं दे सकतीं, लेकिन "खुला" ले लेती हैं। वहीं ईसाई समुदाय में मैरिज करने वाले डाइवोर्स ले लेते हैं। निकाह एक कानूनी अनुबंध है जो "शरिया" के अनुसार होता है। दूल्हे को दुल्हन को एक निश्चित शुल्क देना पड़ता है, जिसे 'मेहर' कहा जाता है। मैरिज भी एक कानूनी बंधन है। अमेरिकन डिक्शनरी Merriam Webster के अनुसार, मैरिज एक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त अनुबंध है। जो कानून द्वारा विघटित हो सकता है। यह उत्तराधिकार और चिकित्सा संबंधी निर्णय लेने जैसे कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
हमारे यहां विवाह जन्म और मृत्यु के बीच होने वाले सोलह संस्कारों में से एक है। जो न केवल वर वधु को, अपितु पूरे परिवार को ईश्वर को साधने के मार्ग प्रशस्त करता है। गृहस्थी हमारे यहां आश्रम कहलाती है। पवित्र अग्नि समेत प्रकृति के पांचों तत्वों, पूर्वजों, देवी-देवताओं, कुटुंब, समाज, मित्र, सम्बन्धी आदि की उपस्थिति में ईश्वर को साक्षी मानकर विवाह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। ये केवल दो व्यक्तियों का नहीं, अपितु दो परिवारों, कुटुम्ब, समाज और राष्ट्र को जोड़कर रखने वाली प्रक्रिया है। जया बच्चन ने जिस तरह कहा है कि उनकी पोती जीवन को एन्जॉय करे, यह सुनकर याद आता है कि किस तरह न्यूयॉर्क में 1840 में फलांक्स नाम के कम्यून बनाये गए, जहां शादी अनिवार्य नहीं थी, फ्री लव का कॉन्सेप्ट था। 1848 में न्यूयॉर्क में ओनेडा कम्युनिटी बनाई गई, जहां कॉम्प्लेक्स मैरिज में हर पुरुष हर स्त्री का पति और हर स्त्री हर पुरुष की पत्नी मानी जाती थी। पश्चिम में ऐसे बीसियों उदाहरण हैं। फिल्मों से समाज का विघटन करते, सनातन पर आघात करने का षड्यंत्र करते करते अब इस तरह के नैरेटिव बनाने की कोशिश की जा रही है। इस तरह के बयानों का तत्काल विरोध करने की जरूरत है। जया बच्चन को अपने बच्चों का क्या भविष्य तय करना है, ये उनका व्यक्तिगत अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक रूप से हमारी सामाजिक व्यवस्था पर चोट करने का उनको कोई अधिकार नहीं है।


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