बार-बार एक ही मुद्दे पर याचिका; हाई कोर्ट सख्त

Advertisement
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने एक जनहित याचिका खारिज करते हुए तीखी टिप्पणी की कि “क्या कोर्ट को तमाशा समझ रखा है?” कोर्ट ने कहा कि एक ही विषय पर बार-बार याचिका लगाना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अदालत ने इस याचिका को निजी उद्देश्यों से प्रेरित बताते हुए याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपए का दंड लगाया है।
यह याचिका आदिवासी संगठन जयस के खरगोन जिला अध्यक्ष सचिन सिसोदिया ने दायर की थी। जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की डिवीजन बेंच ने इसे जनहित से दूर बताते हुए सीधे खारिज कर दिया। सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल आनंद सोनी ने पक्ष रखा।
याचिका में ‘जनहित’ कम, ‘व्यक्तिगत रंजिश’ ज्यादा: कोर्ट
फेसबुक पोस्टों से भी मिला निजी उद्देश्य का संकेत**
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यही मामला पहले भी दो बार अलग-अलग याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया जा चुका है, जिन्हें बाद में खुद याचिकाकर्ताओं ने वापस ले लिया। उपलब्ध रिकॉर्ड, फेसबुक पोस्ट और परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद अदालत ने माना कि यह याचिका ‘सार्वजनिक हित नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रंजिश’ से प्रेरित है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों—बलवंत सिंह चौफाल, एस.पी. गुरुराजा, देवेंद्र प्रकाश मिश्रा और गुरपाल सिंह मामलों—का हवाला देते हुए कहा कि जनहित याचिका जनता की आवाज है, लेकिन इसका उपयोग प्रतिशोध, दबाव या निजी लाभ के लिए नहीं किया जा सकता।
इस आधार पर कोर्ट ने एक माह के भीतर याचिकाकर्ता को 1 लाख रुपए हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी, इंदौर में जमा कराने का आदेश दिया।
ये था पूरा विवाद: पुलिस कर्मियों के आपसी झगड़े को बनाया आंदोलन का मुद्दा
23 अगस्त की रात खरगोन में रिजर्व इंस्पेक्टर सौरभ सिंह कुशवाह और कांस्टेबल राहुल चौहान के बीच सामान्य विवाद हुआ था। जयस ने इसे तूल देकर सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन, हाईवे जाम और एससी-एसटी एक्ट में कार्रवाई की मांग शुरू कर दी। सोशल मीडिया पर अराजकता फैलाने वाली पोस्टें भी डाली गईं।
पहली याचिका हाई कोर्ट में दायर हुई, जिसे वापस ले लिया गया—क्योंकि पीड़ित सरकारी कर्मचारी खुद मामले को लड़ने में सक्षम था। इसके बाद दूसरी याचिका राहुल चौहान के नाम से लगाई गई, जिसे उन्होंने खुद कोर्ट में उपस्थित होकर वापस ले लिया। मगर फिर तीसरी याचिका उसी मामले में जयस नेता सचिन सिसोदिया की ओर से दायर कर दी गई।
सरकार की ओर से पेश किए गए फेसबुक पोस्टों के स्क्रीनशॉट बताते थे कि यह याचिका अशांति फैलाने और निजी विवाद को मुद्दा बनाने की कोशिश है। इस पर कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए याचिका को दुरुपयोग मानकर खारिज कर दिया।
