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PM, CM और मंत्रियों को जेल भेजने वाले बिल पर तीन बड़ी अड़चनें, केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ीं

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नई दिल्ली। लोकसभा ने 130वें संविधान संशोधन विधेयक और दो अन्य विधेयकों को विपक्ष के भारी विरोध और हंगामे के बीच बुधवार को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया है। ऐसी चर्चा है कि शीतकालीन सत्र से पहले जेपीसी इस बिल पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंप देगी। उसके बाद बिल का पारित कराने की प्रक्रिया शुरू होगी। चूंकि यह संविधान संशोधन बिल है, इसलिए मोदी सरकार को इस बिल को पारित कराने की प्रक्रिया में तीन बड़ी अचड़नें हैं। नियमानुसार संसद के दोनों सदनों से विशेष बहुमत के साथ पारित होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन बिल को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में दो स्तरों पर बहुमत चाहिए। पहला, कुल सदस्यों का बहुमत और दूसरा, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। तीसरी अड़चन आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं से भी इस बिल को पारित करना मोदी सरकार के लिए बड़ी अड़चन है। बात दें कि संसद में एनडीए के संख्या बल की और संशोधन विधेयक को पारित कराने में आने वाली अड़चन की। चूंकि, संसद में दो स्तर पर बहुमत चाहिए जिसमें पहला सदन की कुल सदस्य संख्या का 50 प्रतिशत से अधिक मत जरूरी है, इस अड़चन को मोदी सरकार आसानी से पार कर लेगी क्योंकि लोकसभा में 542 सदस्य हैं। इसके बाद 50 फीसदी मत यानी बिल के पक्ष में 272 सांसदों का वोट चाहिए, जबकि मौजूदा समय में उसके पास लोकसभा में 293 सांसद हैं। इसतरह राज्यसभा में अभी कुल सदस्यों की संख्या 239 है। साधारण बहुमत के लिए 120 सांसदों के मत की जरूरत होगी, जो आसानी से पूरी हो जाएगी क्योंकि राज्यसभा में एनडीए के अभी 132 सांसद हैं। अब बात दो तिहाई बहुमत की, जो दूसरी और सबसे बड़ी अड़चन है। लोकसभा में दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा 362 है, जबकि राज्यसभा में यह आंकड़ा 160 है। चूंकि लोकसभा में एनडीए के सांसदों की संख्या सिर्फ 293 है और राज्यसभा में सिर्फ 132 है। इस मामले में दोनों ही सदनों में बिल अटक सकता है। यानी लोकसभा में कुल 69 सांसद और राज्यसभा में कुल 28 सांसदों के समर्थन की दरकार सरकार को होगी। इन आंकड़ों से साफ है कि मोदी सरकार के पास संसद के दोनों ही सदनों में दो तिहाई बहुमत हासिल नहीं है। दूसरी तरफ विपक्षी इंडिया गठबंधन बिल का काला कानून बताकर विरोध कर रहे हैं। अगर सरकार दोनों ही सदनों में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, जगनमोहन रेड्डी की वायआरसीपी और निर्दलियों का भी समर्थन हासिल कर लेती है, तब भी दो तिहाई बहुमत का जुगाड़ नहीं कर सकती है। इसके बाद बिल का संसद से पारित होना नामुमकिन लगता है। इस बिल को पारित कराने की तीसरी बड़ी जरूरत आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं से पारित कराना है। चूंकि भारत राज्यों का संघ है, इसलिए इसतरह के संविधान संशोधन बिल का 50 प्रतिशत राज्यों की असेंबली से पास होना जरूरी है। इस मामले में एनडीए को कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि आधे से ज्यादा राज्यों में एनडीए की सरकार है। एक संभावना यह भी बन रही है कि अगर विपक्ष संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होता है और उसके सुझावों को सरकार मान लेती है, जिसमें कहा जा सकता है कि न्यायिक हिरासत की बजाय सजा होने पर ही इस्तीफे को अनिवार्य बनाया जाए, तब संभावना बन सकती है कि विपक्षी दल उसका समर्थन करें। अन्यथा इस संशोधन बिल के पारित होने की संभावना कम ही है।
