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धर्म-कर्म-आस्थाGeneralजयपुर का प्रसिद्ध गणेश मंदिर, जहां विराजमान हैं दाहिने सूंड वाले गणपति, पहनते हैं स्वर्ण मुकुट, नौलखा हार

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जयपुर का प्रसिद्ध गणेश मंदिर, जहां विराजमान हैं दाहिने सूंड वाले गणपति, पहनते हैं स्वर्ण मुकुट, नौलखा हार

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Unknown Author
22 अगस्त 2025, 01:15 am IST
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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाएगी. इस साल गणेश चतुर्थी 27 अगस्त बुधवार को है. देश में विघ्न विनाशक के कई ऐसे मंदिर हैं, जो उनसे जुड़े चमत्कार को बताते हैं. राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में भी ऐसा ही एक अनोखा मंदिर है, जहां मोती की बूंद जैसी दिखने वाली पहाड़ी पर दाहिने सूंड वाले गणपति विराजमान हैं. मोती की बूंद जैसी पहाड़ी पर है मंदिर जयपुर अपनी समृद्ध संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इस शहर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण के प्रमुख केंद्रों में से एक है. मोती की बूंद जैसी दिखने वाली पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर भगवान गणेश की दाहिनी सूंड वाली प्राचीन मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. मान्यता है कि इस मंदिर में भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और बाधाओं का भी नाश होता है. गणेश उत्सव के मौके पर मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ जुटती है. 18वीं शताब्दी में बना था गणेश मंदिर राजस्थान पर्यटन विभाग के अनुसार, जयपुर में मोती डूंगरी गणेश मंदिर एक पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसे मोती डूंगरी कहा जाता है, क्योंकि यह मोती की बूंद जैसी दिखती है. इस पहाड़ी के चारों ओर जयपुर शहर बसा हुआ है. 18वीं शताब्दी में सेठ जय राम पालीवाल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मोती डूंगरी गणेश मंदिर की कथा मंदिर के बारे में एक रोचक कथा भी मिलती है. किंवदंती है कि मेवाड़ के राजा एक लंबी यात्रा के बाद बैलगाड़ी में गणेश जी की विशाल मूर्ति लेकर लौट रहे थे. उन्होंने तय किया कि जहां गाड़ी रुकेगी, वहीं मंदिर बनाया जाएगा. बैलगाड़ी मोती डूंगरी की तलहटी में रुकी और यहीं 1761 में यह भव्य मंदिर स्थापित हुआ. मूर्ति करीब 500 साल पुरानी मानी जाती है, मूर्ति मावली से उदयपुर और फिर जयपुर लाई गई थी. नागर शैली में संगमरमर से बना मंदिर मोती डूंगरी गणेश मंदिर की संरचना और डिजाइन नागर शैली में है, जो उत्तर भारत की पारंपरिक मंदिर वास्तुकला है. साथ ही, इसका डिजाइन स्कॉटिश महल से प्रेरित है, जो इसे अनूठा बनाता है. मंदिर में तीन प्रवेश द्वार हैं और सामने कुछ सीढ़ियां हैं, जो भक्तों को गणेश जी की मूर्ति तक ले जाती हैं. इसका निर्माण चूना पत्थर और संगमरमर से हुआ है. हर बुधवार को लगता है मेला गणेश भगवान की मूर्ति दाहिनी सूंड वाली है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है. हर बुधवार को यहां मेला लगता है और गणेश चतुर्थी जैसे पर्व पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है. गणेश चतुर्थी, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शुरू होती है, मोती डूंगरी मंदिर में धूमधाम से मनाई जाती है. इस दौरान मंदिर को फूलों, रोशनी और झांकियों से सजाया जाता है. गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दीपावली और अन्य त्योहारों पर यहां विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. स्वर्ण मुकुट और नौलखा हार पहनते हैं गणपति भगवान गणेश को स्वर्ण मुकुट और नौलखा हार पहनाया जाता है, साथ ही पंचामृत अभिषेक होता है. मंदिर में भगवान का मेहंदी से पूजन होता है, जिसे भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. मान्यता है कि जिन लोगों की शादी होने में बाधा आ रही हो, उनके लिए ये मेहंदी वरदान स्वरुप होती है.

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